शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

‘आशावादी’ का राजस्थानी कहानी संग्रह : “आंख्यां मांय सुपनो”

आंख्यां मांय सुपनो (कहाणी संग्रह) मधु आचार्य ‘आशावादी’ / प्रकाशन वर्ष : 2015 / पृष्ठ : 88 / मूल्य : 150 /- प्रकाशक : ऋचा (इंडिया) पब्लिशर्स, बिस्सां रो चौक, बीकानेर
मधु आचार्य ‘आशावादी’
न्म : 27 मार्च, 1960 (विश्व रंगमंच दिवस)
शिक्षा : एम. ए. (राजनीति विज्ञान), एल.एल.बी.
1990 से राजस्थानी और हिंदी की विविध विधाओं में लेखन। ‘स्वतंत्रता आंदोलन में बीकानेर का योगदान’ विषय पर शोध। नाटक के क्षेत्र में विशेष कार्य। दो सौ से अधिक नाटकों में अभिनय और 75 नाटकों का निर्देशन।
प्रकाशन : राजस्थानी : ‘अंतस उजास’ (नाटक), ‘गवाड़’, ‘अवधूत’, ‘आडा-तिरछा लोग’ (उपन्यास) ‘ऊग्यो चांद ढळ्यो जद सूरज’, ‘आंख्यां मांय सुपनो’ (कहाणी-संग्रै), ‘अमर उडीक’ (कविता-संग्रै), ‘सबद साख’ (राजस्थानी विविधा) का शिक्षा विभाग, राजस्थान हेतु संपादन।
हिन्दी साहित्य में दो दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। 
पुरस्कार : उपन्यास ‘गवाड़’ पर साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर कानी से ‘मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा-पुरस्कार’ के अतिरिक्त अनेक मान-सम्मन और पुस्कार। 
वर्तमान मे साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के सदस्य एवं दैनिक भास्कर (बीकानेर) के कार्यकारी संपादक। संपर्क : कलकत्तिया भवन, आचार्यां का चौक, बीकानेर (राजस्थान)
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पुस्तक के ब्लर्ब का अनुवाद 
नाटकीय संवाद कहानी कौशल का सामर्थ्य
० भंवर लाल भ्रमर, बीकानेर
       मधु आचार्य ‘आशावादी’ राजस्थानी और हिंदी साहित्य में सुपरिचित नाम है। अत्यंत हर्ष का विषय है कि इन वर्षों में अलग-अलग विधाओं में आपका निरतंत सृजन-कर्म प्रकाशित हो रहा है। इस नवीन कहानी संग्रह ‘आंख्यां मांय सुपनो’ (आंखों में स्वप्न) से आपका कहानीकार रूप मजबूत होता नजर आता है। लेखक आशावादी का कहानी-लोक, अपने आस-पास की देखी-सुनी, जानी-पहचानी बातों और चरित्रों का रचाव कहा जा सकता है। कहानीकार के संग रहने वाले कुछ करीबी चरित्रों की रंग-भीनी छवियों-बातों को नाटकीय ढंग से प्रयुक्त करते हुए रचना में समेटते हैं कि हर कहानी हृदयस्पर्शी बन जाती है। कहानी कौशल का यह सामर्थ्य है कि नाटकीय संवादों के भाषाई जादू में किसी फिल्म की भांति दृश्यमान होती है।
       ‘आंख्यां मांय सुपनो’ संग्रह में कुल 9 कहानियां संकलित है। अपने यहां यह अंक शुभ माना जाता है। यह शुभ संकेत ही कहा जाएगा कि आज के दौड़-भाग के इस समय में लेखक आस्था, संस्कार और मूल्यों की पैरोकारी करने का प्रयास करता है। इन कहानियों में समय के सताए चरित्रों के शानदार उदाहरण मिलते हैं। कहानीकार ने अपने नाम के अनुरूप इन कहानियों में आशावादी स्वर और सोच संजोया है।
       ‘सीर री जूण’ के मोहन भा हो या ‘लाल गोटी’ के गफूर चाचा हो, चाहे ‘गोमती री गंगा’ कहानी की स्वयं गोमती हो... बहुत सारे चरित्रों में जीवन से जूझ और समस्याओं से सृजित आशा को देखा जा सकता है। ‘धरम री धजा’ का शब्बीर जहां हिंदू-मुस्लिम आदि सभी धर्मों से बड़ा धर्म मनुष्य का मनुष्य होना प्रस्तुत करता है तो वहीं ‘सरपंची रो साच’ उसी मनुष्य के जागरण की कहानी कही जा सकती है। नवीन सृजित होती इस दुनिया के आंगन में ‘घर री भींत’ के चोरुलाल जैसे चरित्र भी तो ‘सेवा रा मेवा’ के जीवण जैसे ही है, जो पाप-पुन्य मे मध्य स्वय़ं की माया नगरी रचते नजर आते हैं। यह भ्रम तोड़ने वाला मनुष्य इसी लोक से आएगा और ‘हेत री सूळ’ की नायिका मंजू जैसे अंततः चकाचौंध से तंग आकर वास्तविक उजियारे में नई स्थापनाएं करेंगे। इन कहानियों में कहानीकार का किसी प्रकार की शिक्षा देने का भाव नहीं है, वह तो बस इन चरित्रों के माध्यम से जीवन के राग-रंग और जूझ का चित्रण उपस्थित करता है जिस से पढ़ने वालों के हृदय में प्रकाश फैलता जाता है।
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बेजोड़ और जटिल चरित्रों की कहानियां
० नीरज दइया, बीकानेर
      हिंदी-राजस्थानी में सभी विधाओं और समान रूप से लिखने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी मधु आचार्य ‘आशावादी’ का दूसरा कहानी संग्रह है- ‘आंख्यां मांय सुपनो’। अपने पहले कहानी संग्रह ‘उग्यो चांद, ढ्ळ्यो जद सूरज’ और पहले उपन्यास ‘गवाड़’ से ही वे राजस्थानी में व्यापक चर्चा में रहे हैं। ‘आंख्यां मांय सुपनो’ में कहानीकार के आस-पास की दुनिया है। हर रचना का मुख्य आधार लोक ही होता है, बिना किसी लोक के कोई रचना संभव नहीं। कहा जाता है कि किसी रचना का आधार भीतरी अथवा बाहरी दुनिया का समन्वय होता है। वर्तमान समय में इन दोनों में संवाद का अभाव है। मुश्किल समय में इतनी व्यस्थता कि सहज संवाद के लिए समय ही कहां है? संवाद के मार्ग अवरुद्ध हो गए हैं, या बंद कर दिए जाने के कगार पर हैं। इन कहानियों में कहानीकार ने हमारे संवाद का कहीं कोई सूत्रपात किया है।
      मूलतः नाटकनार आचार्य के रचना-संसार में संवाद की प्रमुखता और विधाओं का समन्वय प्रमुखता से मिलता है। अतिश्योक्ति नहीं होगी यदि कहा जाए कि ये कहानियां हमें हमारी आस-पास बिखरी लगती है, अथवा ये हमारी खुद की कहानियां हैं जिन्हें नाम बदल कर यहां संग्रहित किया गया है। ‘आंख्यां मांय सुपनो’ संग्रह की कहाणियों में कई यादगार पात्र मिलते हैं। मधु आचार्य ‘आशावादी’ के कथा-साहित्य का मूल आधार ही कुछ यादगार पात्र और चरित्र है। संभवतः उनके लेखन का उद्देश्य ही बेजोड़ और जटिल चरित्रों को प्रस्तुत कर अपनी बात कहना है।
     संग्रह की पहली कहाणी ‘सीर री जूण’ के मोहन भा ने पूरा जीवन बिना किसी रोजगार की चिंता में निकाल दिया, अंत में उनके भीतर एक बालक के अबोध शब्द जैसे किसी कंकर की भांति भीतर फैले एकांत में ऐसी हलचल या कहें तबाही मचाता है कि वे संसार छोड़ जाते हैं। दूसरी तरफ कहानी ‘लाल गोटी’ के गफूर चाचा अपने दुख को अपने आस-पास पसरी दुनिया में बच्चों के संग खेलते हुए जैसे विस्मृत किए रहने का हिंट देते हैं। तो कहानी ‘आंख्यां मांय सुपनो’ की पार्वती काकी आपने बेटे के इंतजार में जीते-जी ही जैसे पत्थर होकर खुद एक कहानी बन गई है। 
    राजस्थानी कहानियों में मधु आचार्य ‘आशावादी’ का अवदान कि वे जीवन-संघर्षों एवं त्रासदियों को हमारे सामने भाषा में घटित होते हुए प्रस्तुत करते हैं। इन कहानियों में सांप्रदायिक सद्भाव, एकता-अखंडता और भाईचारो भी उल्लेखनीय है। कहानी ‘धरम री धजा’ में मिंदर-मस्जिद के समन्वय का एक प्रमुख संदेश है। आश्चर्य होता है कि इस युग में शब्बीर और जगदीश जैसे मनुष्य भी हैं। जिस क्रम से विगत घटनाओं और चरित्रों को कहानीकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ आहिस्ता-आहिस्ता प्रगट करते हैं वह कहानी पढ़ते हुए जैसे प्रभावी भाषा से भीतर जीवंत हो कर गतिशील हो उठता है। कहाणी ‘सरपंची रो साच’ जैसी रचना से दुनिया में छल-छंद करने वालों के प्रति निंदा और घृणा का भाव हृदय में जाग्रत होता है। नई दुनिया और इंटरनेट की कहाणी ‘हेत री सूळ’ में है तो ‘सेवा रा मेवा’ में आधुनिक होते समाज के विरोधाभास और द्वंद्व उजागर हुए हैं। ‘गोमती री गांगा’ घर-परिवार और एक विक्षिप्त लड़की के मनोविज्ञान से जुड़ी बहुत ही नए विषय को लेकर मार्मिक और अविस्मरणीय कहानी है।
    मधु आचार्य ‘आशावादी’ को पढ़ते हुए मुझे उपन्यासकार-कहाणीकार यादवेंद्र शर्मा ‘चन्द्र’ का स्मरण इसलिए भी होता है कि उन्होंने बहुत से बेजोड़ पात्र कथा-साहित्य को दिए और कहाणीकार सांवर दइया का स्मरण इसलिए होता कि उन्होंने कई संवाद-कहाणियां लिखी। क्या यहां यह कहना उपयुक्त होगा कि इन दोनों रचनाकारों की सृजन-परंपरा का विकास हम मधु आचार्य ‘आशावादी’ के लेखन में देखते हैं। अंत में यह उल्लेख भी आवश्यक है कि हिंदी में भी लिखने वाले हमारे कुछ राजस्थानी लेखक अपनी हिंदी रचनाओं का अनुवाद मातृभाषा में प्रस्तुत कर, ऋण अदा करने का संतोष पाते हैं। इस से अलग उल्लेखनीय है कि मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने विपुल मात्रा में हिंदी लेखन किया है फिर भी राजस्थानी में किसी अपनी ही रचना को अनुवाद कर मौलिक राजस्थानी लेखन के बतौर प्रस्तुत नहीं किया है।
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‘विषयगत’ दो कदम आगे की कहानियां 
० हरीश बी. शर्मा, बीकानेर
    ‘आंख्यां मांय सुपनो’ संग्रह की दो कहानियां हैं- 'हेत री सूळ' और 'गोमती री गंगा', ये पाठक को सोच के नए आयाम देती हैं। नेट-चैट से पनपते प्यार बनाम टाइमपास पर लिखी कहानी 'हेत री सूळ' समकालीन संदर्भों की उम्दा कहानी है, जिसमें बताया गया है कि दोष आविष्कारों या सुविधाओं का नहीं है, उन्हें बरतने में की जाने वाल बेवकूफियों का है। इसी तरह 'गोमती री गंगा' एक पागल किरदार की सहनशक्ति खत्म होने की कहानी है, पूरी कहानी में यह अपनी उपस्थित सिर्फ जिक्र भर से दर्ज करवाता है और अंत में भी एक जिक्र होता है। फिर भी यह चरित्र समझा जाता है कि हम जिन्हें पागल समझते हैं, उनकी संवेदनाओं का स्तर किसी समझदार से कमतर नहीं होता, बल्कि जब उनके जच जाती है तो फिर कोई आगा-पीछा भी नहीं सोचते। यथार्थ के धरातल पर रची कहानी 'हेत री सूळ' और संवेदनाओं का अन्वेषण करती कहानी 'गंगा री गोमती' ये खास कहानियां है।
    वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार, साहित्यकार मधु आचार्य 'आशावादी' की कहानी-कला की विशेषता है कि वे पाठकों को अपने पाठ में धीरे-धीरे एकाकार सहजता के साथ करते हुए विषय के अंत तक ले जाते हैं। पाठकों की आत्मीयता कथ्य से जुड़ कर कुछ ही देर में वे अपने आप को एक किरदार की तरह महसूस करने लगते हैं और इस अनुभव से एक यात्रा उसके जेहन में रहती है।
    मधु आचार्य 'आशावादी' का कहानी में कहन और बयान आधुनिक होते हुए भी कहानी-कला के परंपरागत मूल्यों को यहां देखा जा सकता है। वे अपने पाठक को कहानी के अंत में किसी अंधेरी हवेली में हाथ छुड़ाकर भागने जैसा व्यवहार करते दिखाई नहीं देते। यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता है, और यही वजह है कि वे पाठक का तादात्म्य बनाते हुए स्मृतियों को स्थाई करते हैं। दूसरी बड़ी विशेषता भाषा का संवाद पक्ष है। संवाद यहां किसी शैली की भांति प्रयुक्त होती है। संभवतः उनका रंगकर्मी और नाटककार होना कहानी-कला में एक विशेष घटक के रूप में जुड़ता है। सरल-सुबोध और आम बोलचाल की भाषा में वे कहानी रचते हुए जैसे कहानी कहते हैं, बात को घुमा-फिराकर या प्रतीकों में उलझाकर कहना उनकी फितरत नहीं है। कहानियों की दार्शनिकता रुचिकर लगती है।
    संग्रह में नौ कहानियां हैं। शीर्षक-कहानी 'आंख्या मांय सुपनो' एक युवक के फौजी बनने और उसकी मां के इंतजार का आख्यान। यह संयोग ही है कि जिस वक्त यह कहानी पढ़ी जा रही है, ठीक उसी वक्त आतंकवादियों से भारतीय सेना के जवान लड़ रहे हैं, एक जवान रमेश की शहादत भी सात आतंकवादियों को मारने के बाद होती है।
    देश में दंगों की चपेट में आने वाले मासूमों की संवेदनाओं को उकेरती कहानी 'लाल-गोटी' है तो दूसरी ओर साम्प्रदायिकता समस्या के सामने चट्टान की तरह खड़ी कहानी 'धरम री धजा' है जिसमें कौमी-एकता की एक अनूठी मिसाल प्रस्तुत हुई है। 'घर री भींत' कहानी अपनी सारी जिंदगी सभी को जोड़कर रखने और बच्चों को बेहतरीन परवरिश देन की कोशिश करने वाले व्यक्ति की है, जिसे अंतत: बंटवारे की स्थितियों का सामना करना पड़ता है। संग्रह की पहली कहानी 'सीर री जूण' भी एक ऐसी ही कहानी है, जिसका किरदार मन के दुख-दर्दों पर मस्ती का मुखौटा लगाए फिरता है और ऐसी स्थितियां आ जाती है कि लोग मुखौटे को ही सच समझने लगते हैं। इस संग्रह में 'सेवा अर मेवा' और 'सरपंची रो साच' नए संदर्भों से जुड़ी कहानियां है।
    मधु आचार्य 'आशावादी' की विशेषता है कि वे अपनी बात को कहने के लिए नए विषयों का चयन करते हैं और बहुत सारे विषय तो ऐसे होते हैं, जिन पर साहित्यकार-समाज का अभी तक ध्यान ही नहीं गया है। यह दौर में जहां शिल्प पर काम किया जा रहा है, महत्त्वपूर्ण है कि मधु आचार्य 'आशावादी' नए विषयों को सामने रख रहे हैं। शिल्प से साहित्यकार का वजूद बनता है और नए विषयों के आने से साहित्य का समाज से सरोकार सघन होता है। कहना होगा कि ये कहानियां ‘विषयगत’ दो कदम आगे की कहानियां हैं।
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चिंतन को विवश करती कहानियां
० मनोज पुरोहित ‘अनंत’, केसरीसिंहपुर (श्रीगंगानगर)

    मधु आचार्य 'आशावादी’ की कहानियों में उनके व्यापक और विशद अनुभव अभिव्यक्त हुए हैं। वर्तमान दौर में वे जिस सक्रियता से साहित्य से जुड़े हैं बहुत बड़े-बड़े लेखक उनके सामने बौना महससू करने लगे हैं। 'आंख्यां मांय सुपनो’ को पढऩा यानी हमारे ज्ञान-कोष में नए ज्ञान और समझ का जुड़ना है। इन रचनाओं पर कोई टीका-टिप्पणी करने की बजाय मैं एक पाठक के रूप में अपने पाठ के अनुभवों को साझा करना चाहता हूं। मधु आचार्य की कहानियों के पात्रों में पीड़ा और संवेदना का उफान है। वे पाठक के हृदय पर गहरी छाप छोड़ने में सक्षम है। न केवल किसी निशान के रूप में ये कहानियां अपनी छाप छोड़ती है वरन सद्भाव और कर्तव्यबोध का निर्वाहन करना भी सिखाती है। प्रत्येक कहानी का आरंभ बहुत सहजता से हुआ है लेकिन हर कहानी के आखिर तक पहुंचना मानो उसमें ऐसा डूब जाता है कि बिना भीगे निकलना मुश्किल है। कहानी में घटित घटनाक्रम हम हमारे आस-पास घटित होता महससू कर सकते हैं।
    कहानी 'गफूर चाचा’ और 'धरम री धजा’ कहानियों में आंखें डबडबा जाती हैं। ये चिंतन को विवश करती यथार्थ जीवन की प्रासंगिकता से रू-ब-रू करवाती है। उनकी इन कहानियों में कल्पना और यथार्थ का संगम है। लगता है जैसे उनके विचार, विचार नहीं बल्कि सच्ची घटनाओं और आपबीती पर समय के साथ सोच बदलने की प्रस्तावना है। धार्मिक आडंबरों पर इन कहानियों के पात्रों सवाल उठाएं हैं। तथाकथित धार्मिक विरोधाभास की चर्चाओं के बीच मानवता से परिपूर्ण पात्रों को जीवित करना लेखक की सहिष्णुता को चरितार्थ करना है। ‘गफूर चाचा’ कहानी में जहां मंदिर-मस्जिद के मार्गों को एक बताया है, वहीं धर्मों के भेदने का संदेश है।
    ‘आंख्यां मांय सुपनो’ शीर्षक कहानी में पार्वती काकी का किरदार परिवार-समाज और रिश्तों से दूर पहले देश सेवा का जज्बा पैदा करती है। इसी भांति ‘गोमती री गंगा’ कहानी एक परिवार के समक्ष आने वाली कठिनाइयों के नाकारात्मक प्रभाव का प्रत्यक्ष चित्रण है।
    राजस्थानी भाषा में अभिनव शैली में यह अनूठा रचवा है। लेखक ने बीकानेर के जन-जीवन को भाषा में जीवंत किया है। यह सांस्कृतिक धरोहर और लोक जीवन की अभिव्यक्ति है। समाजिक परिवेश के रास्ते पर संगह की कहानियां में ऐसे भावों को दर्शाना समय और समाज की आवश्यकता है। संस्कार संरक्षण से ही नई पीढ़ी अपने माता-पिता के प्रति फर्ज को समझ सकेगी। इन बहुरंगी कथा-संसार में रिश्ते-नातों से घिरे कई किरदार बार-बार इशारा करते हैं कि सामाजिक ताना-बाना अव्यवस्थित और गड़बड़ा होता जा रहा है। आदमी यहां अकेलेपन और एकाकी जीवन का शिकार हो रहा है। वह बेटे का इंतजार करती मां हो, या बेटों के अपने फर्ज के प्रति मुंह मोड़ लेने पर घर में खड़ी दीवार को देख घर छोड़ कर चले जाने वाले सेठजी हो।
    समग्र रूप से इन कहानियों में समाज की सच्चाई संवेदनाओं के साथ बयां हुई है। इनमें प्रामाणिकता और अपनापन है। ये मानवता की स्थापना की कहानियां है, जो पाठकों को लंबे समय तर स्मरण में रहती हैं और आकर्षित करती रहेंगी।
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मन और संबंधों की संवेदनात्मक पड़ताल : आंख्यां मांय सुपनो
० डॉ. रेणुका व्यास ‘नीलम’, बीकानेर

    ‘आंख्या मांय सुपनो’ मानव मन और मानव संबंधों की संवेदनात्मक पड़ताल करने वाला ऐसा राजस्थानी कहानी-संग्रह है जो कहानीकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ को ‘जीवन का सच्चा पैरोकार’ सिद्ध करता है। उक्त कहानी संग्रह के पात्र एक तरफ अपने जीवट और जीजिविषा से पाठक का मन मोहते हैं तो दूसरी ओर वे परिस्थितियों की मार से कुटते-पिटते और ढलते हुए, पाठक के मन में टीस भी पैदा करते है।
    संग्रह में नौ कहानियां है, जिनके पात्र और घटनाएं एकदम साधारण किंतु विशिष्ट है। कहानीकार की पैनी, गहरी, संवेदनापूर्ण और मनोविश्लेषणात्मक दृष्टि, जो साधारण में विशिष्ट को देख पाती है और अपनी विशिष्ट शैली में उसे अभिव्यंजित कर पाती है। कहानीकार जीवनमूल्यों, संस्कारों तथा मानव-धर्म के संरक्षण पर जोर देता हुआ, गहरे नैतिकता बोध से संचालित नजर आता है।
    कहानी ‘सीर री जूण’ के मोहन भा का मसखरापन परिस्थितियों की मार और उसकी अपनी असहायता से उपजता है जिसे वह कवच की तरह ओढे रखता है ताकि दुनिया की व्यंग्योंक्तियों से बच सके पर विडम्बना है कि वह स्वयं की नजर से नहीं बच पाता। ‘लाल गोटी’ का गफूर चाचा ऐसा महामानव है जो अपने दर्द को दवा बनाकर जमाने भर के दर्द का इलाज करता है। कहानीकार की नजर में ऐसा इंसान आज के समय की जरूरत है। ‘आंख्यां मांय सुपनो’ की पार्वती वह वात्सल्यमयी माँ है जो मातृभूमि की पीड़ा को दूर करने के लिए अपने इकलौते पुत्र को बलिदान कर देती है और पुत्र की अनंत प्रतीक्षा और चुप्पी का अंतहीन मार्ग अपने लिए चुन लेती है। इस चुप्पी की गहरी गूंज देर तक पाठक मन को प्रकंपित करती है।
    साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल कायम करने वाली कहानी ‘धरम री धजा’ ‘मानव’ होने को ही सबसे बड़ा धर्म घोषित करती है। लेखक के प्रश्न ‘‘कुण चालतो रैयो’’ का उत्तर देना आज के संकीर्ण इंसान के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। ‘सरपंची रो साच’ में कलाकार राजनीति की गंदगी मिटाने के लिए आज के सजग और शिक्षित युवाओं का आह्वान करता है। ‘गोमती री गंगा’ में गोमती का दायित्वबोध और संघर्ष प्रभावित करता है। उसकी ‘गैली बेटी’ के द्वारा माँ को मारने वाले पिता की हत्या कर देना तो नैतिकता के रूढ़ मानदण्डों को ध्वस्त करता हुआ ‘गैला कौन’ ‘नैतिकता क्या’ ? जैसे कई प्रश्न हमारे सामने खडे़ करता है। यह कहानी लेखक के मनोविज्ञान की समझ का सशक्त उदाहरण है। कहानी ‘घर री भींत’ मानवता के आंगन में हरदिन खड़ी होने वाली दीवारों को सिरे से खारिज करती है। कहानी ‘सेवा रा मेवा’ सेवा कार्यों का सच प्रकट कर इंसान के दोगलेपन को सामने लाती है। ‘हेत री सूळ’ इंटरनेट के मोह में फंसी नई पीढ़ी के मोह-भंग की कहानी है।
    कहानियां गत्व्यात्मक वार्तालापों के माध्यम से कौतुहल रचती र्हुइं आकार ग्रहण करती हैं और अन्ततः नाट्य क्षण में चरम परिणति प्राप्त करती हैं। कहानीकार पाठक के समक्ष नाटक की सी दृश्यात्मकता रचकर कहानी को अनायास ही बहुआयामी बना देता है। साधारण तरीके से उत्पन्न यही बहुआयामीपन इस संग्रह की अन्यतम विशेषता है।
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मानवीय संवेदनाएं जगाती कहानियां
० राजेन्द्र शर्मा ‘मुसाफ़िर’, चूरू

    तेजी से बदलते तकनीकी युग में सामाजिक परिदृश्य भी बड़ी तेजी से बदल रहा है। पीछे मुड़कर देखते हैं तो बहुत सी बातों पर यकीन नहीं होता। व्यक्तिगत सोच, पारिवारिक रिश्ते और सामाजिक कर्तव्यों का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। भीड़ में चल रहा व्यक्ति भी खुद को अकेला महसूस कर रहा है। धर्म एवं संप्रदाय के नाम पर आज मानवता आहत होती है। परिवार टूट रहे हैं ऐसे समय में व्यक्ति का ‘आशावादी’ दृष्टिकोण ही समाज में आदर्शों की पुनर्स्थापना कर सकता है।
    कथाकार मधु आचार्य ने अपने तख़ल्लुस ‘आशावादी’ को सार्थक करते हुए ‘आंख्यां मांय सुपनो’ में उच्च आदर्शवाद को तरजीह दी है। भले ही हम बाजारवाद के चंगुल में फंसे हों, भौतिकता की अंधी दौड़ में परस्पर टकराते हुए लहुलुहान हो रहे हों फिर भी आचार्य के पात्र गफूर चाचा और शब्बीर जैसे इंसान समाज में मौजूद हैं तो सामाजिक समरसता को कोई ख़तरा नहीं। आलोच्य संग्रह की सभी नौ कहानियां चिंतन की बजाय भाव स्तर पर प्रभावित करने वाली हैं।
    ‘‘रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय....।’’ रहीमजी के इस दोहे की प्रासंगिकता आज भी है। ‘सीर री जूण’ के केंद्रीय पात्र मोहन भा के जरिये लेखक रोचक ढंग से इसी बात को प्रस्तुत करता है। भाग्यहीन 55 वर्षीय मोहन भा को लोग रईस और मस्तमौला मानते हैं। परन्तु मोहन भा के भीतर का दर्द वे स्वयं और उनकी पत्नी के सिवा कोई नहीं जानता। लोगों के भीतर पीड़ा का सागर है लेकिन उस उसकी तह तक कौन जाता है? ऐसी ही मार्मिक पीड़ा को बयान करने वाली कहानियां हैं- ‘गफूर चाचा’ और ‘आंख्यां मांय सुपनो’। बेदर्द दुनिया से मिले दुखों को ढोने और वितृष्णा पालने की बजाय दूसरों के सुख में सुखी होने और सुख बांटने का आदर्श देखना हो तो कहानी गफूर चाचा पढ़नी चाहिए। बरसों पहले गफूर का पांच वर्षीय बेटा सांप्रदायिक आग की भेंट चढ़ जाता है। परंतु गफूर ने मोहल्ले के बच्चों में इतना प्यार-स्नेह बांटाता है कि वह सबका चाचा बन जाता है। मानव के लिए मानवता ही सर्वोपरि धर्म होने का उदाहरण गफूर के व्यवहार से साबित होता है। कथाकार ने सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश देने का सद्प्रयास किया है।
    ‘धरम री जड़’ में इसी तरह का कथानक लिए हुए है परन्तु अतिरंजनापूर्ण घटनाचक्र स्थापित करने के कारण ग्राह्य नहीं हो पाता। ‘सरपंची रो साच’ कहानी राजनीति के छल-कपट पर टिकी है। कहानीकार फर्जी मार्कलिस्ट के आधार पर जीतने वाले सरपंच को बेनकाब कर न्याय में विश्वास कायम करता है। परिवार टूटने का, घरों में उगती दीवारों का दर्द सभी को है परन्तु पारिवारिक सत्ता मानो अराजकता से श्रापित हैं। दिलों के बीच खिंचती दीवारें जब प्रत्यक्ष घरों में घर कर जाती हैं तो परिवार के मुखिया का हृदय विदीर्ण होता है। ‘घर री भींत’ कहानी में इस कटु सत्य का सुंदर चित्रांकन है।
    मधु आचार्य की इन कहानियों में व्यक्ति एवं समाज की अच्छाइयों को पूरे उत्साह के साथ प्रस्तुत किया गया है। कथानक सहृदय को रुचते हैं। पात्रों की सहज संवादशैली और भाषा की प्रांजलता से प्रवाह बनता है। पात्रों की चारित्रिक विशेषताएं ही समाज में उच्च आदर्श की स्थापना करती हैं। इन कहानियों से प्रमाणित होता है कि यांत्रिक होते इस दौर में संवेदनाएं सदा हरी रहेंगी।
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परंपरा और आधुनिकता के द्वंद्व से जुड़ी कहानियां
० डॉ. संजू श्रीमाली, बीकानेर

    मधु आचार्य ‘आशावादी’ की प्रगतिवादी सोच उनके संग्रह ‘आंख्यां मांय सुपनो’ में स्पष्ट परिलक्षित होती है। संग्रह की नौ कहानियों में गहन संवेदनाएं हैं। हरेक कहानी के रचाव में मानवीय संबंधों की जीवतंता है। आचार्य एक सफल और कुशल रंगकर्मी है, इसकी झलक उनकी कहानियों के संवाद में बखूबी मिलती है। हरेक पात्र का वार्तालाप रंगमंच के दृश्य की भांति जेहन में उभरता चला जाता है। कहानियों के पात्र आम जिंदगी से है। वे सुख-दुःख की धूप-छांव को सहते हुए ‘स्वान्तः सुखाय’ की अपेक्षा ‘सवन्तिः सुखाय’ की तलाश करते हैं।
    ‘सीर री जूण’ का मुख्य पात्र मोहन-भा बाहरी जीवन में ठिठौली को छोड़ दे तो आभ्यंतर जीवन हाहाकार करता वेदना के समुद्र सा पछाड़े खाता हुआ है। अपने भीतरी दुखों की लपटों को मिटाने के लिए जैसे वे मसखरी का लेप लगाए रखते हैं। वे अपने नकारेपन को पत्नी के सामने खुले मन से स्वीकार करते हैं। खेलने-खाने की उम्र में अपने बेटों को दो-जूण की रोटी का जुगाड़ करते देख एक हताश, असहाय पिता की भूमिका में नजर आते हैं। इसी प्रकार ‘लाल-गोटी’ कहानी के गफूर चाचा संतान खोने के गम को बच्चों के साथ बच्चा बनकर भूलाने के प्रयास में है। उनका इकलौता पुत्र धर्मांध-दंगों का शिकार हो जाता है तब से वे धर्म और वैमनस्य को भूलकर मानवीय संवेदनाओं का दामन थामे हैं।
    शीर्षक कहानी ‘आंख्यां मांय सुपनो’ की पार्वती परिस्थितियों की मारी अभागी मां है। अपने इकलौते पुत्र की खुद ही मां-पिता बनकर परवरिश करती है। पुत्र मां की स्थिति और मनोदशा को समझता है। उसके पुत्र का फौज में चयन हो जाता है। पार्वती अपने ममत्व से भरे कलेजे पर पत्थर रखकर पुत्र को मातृभूमि सेवा में समर्पित कर देती है। पुत्र की शहादत और उसकी अंतहीन प्रतीक्षा में उसका जीवन मंदिर और सड़क निहारने की नीरवता में बदल जाता है। पाठक-मन उसकी अंतहीन चुप्पी से द्रवित हो उठता है। चुप्पी ओढ़कर पार्वती पुत्र-प्रतीक्षा का सपना संजोती है।
    ‘धरम री धजा’ साम्प्रदायिक-सद्भाव का जीता-जागता उदाहरण है। हिन्दू-मुस्लिम बैर-भाव से परे मानव-धर्म की पैरवी करती है। ‘सेवा रा मेवा’ आधुनिक सेवा का सच सामने लाकर इंसान के दिखावे पर करारा प्रहार करती है। ‘हेत री सूळ’ इंटरनेट के जाल में फंसे युवा-वर्ग के अंर्तद्वन्द्व की कहानी है। ‘सरपंची रो साच’ कुत्सित राजनीति पर चोट करती है। ‘गोमती री गंगा’ एक स्त्री-जीवन की त्रासदी का सशक्त हस्ताक्षर है। इस कहानी की गोमती हो और उसकी गूंगी बेटी अपने दायरे में पुरुष-दंश को झेलती है। गोमती की गूंगी बेटी पिता से मां को पिटते देख उसका हल पिता की हत्या के रूप में निकाला- ‘गंगा सिनान हुयग्यो ! गंगा सिनान हुयग्यो।’ संवाद पाठक के अंतर्मन को लंबे समय तक झकझोरता है। यह कहानी बाल-मनोविज्ञान की झलक पेश करती है।   
संग्रह की सभी कहानियां सामाजिक जुड़ाव, सांस्कृतिक संरक्षण, परंपरा और आधुनिकता के द्वंद्व से जुड़ी हैं। कहानीकार की रंगधर्मिता हर कहानी में बोलती है। आधुनिक सामाजिक संरचना के खोखलेपन और दोगलेपन पर व्यंग्यात्मक शैली का विश्लेषण भी रेखांकित किए जाने योग्य है। कहानियों में राजस्थानी मुहावरे और लोकोक्तियां कथानक में प्राण संचरण करते हैं।
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मानवीय संबंधों का सूक्ष्म चित्रांकन
० डॉ. कुंजन आचार्य, उदयपुर

कहानी संग्रह ‘आंख्या मांय सुपनो’ बेहतरीन और मानवीय रुचि से ओतप्रोत कहानियों का एक अद्भुत संग्रह है। कहानीकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने समाज की विभिन्न गतिविधियों को पारखी नजरों से मूल्यांकन करते हुए कागज पर उतारा है। संग्रह की दिल को छूने वाली कहानियां ना तो ज्ञान बांटती है, ना ही कोई नैतिक उपदेश की बातें करती हैं। संवेदनाओं से पाठक की आंखें नम हो जाती है। शीर्षक कहानी दिल को भीतर तक छूती है। यह एक ऐसी मां की कहानी जिसका जीवन का एक मात्र सहारा देश के लिए शहीद हो जाता है। आतंकवादियों से लोहा लेते हुए देश के लिए काम आ जाता है। पार्वती काकी के रूप में उस मां की मनोदशा का सूक्ष्म चित्रण कहानीकार ने बखूबी किया है। बेटे को खो देने की पीड़ा आंखों में लिए सड़क को रोजाना पागलों की तरह ताकने वाली मां की पीड़ा को लेखक ने दिल की गहराइयों में उतर कर लिपिबद्ध किया है।
हमारे समाज में धार्मिक कट्टरता देश की प्रगति में हमेशा से बाधक बनी हुई है। इस कट्टरता की आड़ में हमारा सौहार्द और धार्मिक अपनापन सिकती हुई राजनीतिक रोटियों के बीच कहीं दब जाता है। संग्रह की दो कहानियों- ‘गफूर चाचा’ और ‘धरम री धजा’ में इसी विद्रूपता को उजागर किया गया है। गफूर चाचा कहानी का एक ऐसा चरित्र है जिनका पांच साल का बच्चा सांप्रदायिक दंगे की भेंट चढ़ जाता है और वह अपने बच्चे को खोने की टीस अपने बुढ़ापे तक भुगतते दिखाई पड़ते हैं। ‘धरम री धजा’ में भी समाज की धार्मिक कट्टरता और धर्मांधता पर भी कड़ा प्रहार है। हिंदू बेटा अपनी बीमार मां को अपने परिवारिक मुस्लिम मित्र के भरोसे छोड़ कर सरकारी काम से चला जाता है। पीछे हृदयाघात से मां की मृत्यु हो जाती है और बेटे के लौटने तक मां के अंतिम क्रिया कर्म की तैयारी का मार्मिक चित्र लेखक ने जिस तरीके से खींचा है वह हमें धार्मिक सहिष्णुता और प्रेम का एक अद्भुत संदेश देता है। कहानी संदेश है कि हिंदू अर्थी को मुस्लिम कंधा दिए हुए हैं, जाती हुई अर्थी को देखने वाले समझ नहीं पा रहे कि यह किस धर्म के व्यक्ति की अर्थी है।  इंसानियत का धर्म सभी धर्मों से बड़ा है और इस कहानी में शायद इसी धर्म की ध्वजा को लेखक ने शिखर तक पहुंचाया है।
कहानी ‘गोमती की गंगा’ रोंगटे खड़े कर देने वाली है। हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति और घरेलू हिंसा का एक प्रत्यक्ष नमूना शब्द चित्र के माध्यम से लेखक ने खींचने की कोशिश की है और उस विसंगतियों पर भी प्रहार किया है। पारंपरिक विषयों से अलग हटकर इंटरनेट की आभासी दुनिया के खतरों को कहानी ‘हेत री सूल’ से नई पीढ़ी में इंटरनेट की लत और उससे जुड़ी विभिन्न विसंगतियों को मनोवैज्ञानिक ढंग से रेखांकित किया है। संग्रह की अन्य कहानियां- सीर री जूण, सरपंची रो सोच, घर री भींत, सेवा रा मेवा समकालीन संदर्भो की पठनीय रचनाएं है। मधु आचार्य आशावादी मानव मन के भीतर चलने वाले विभिन्न विचारों के झंझावातों को बारीक नजर से देखते, पढ़ते और लिखते हैं।
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राजस्थानी संस्कृति का गहरा सरोकार  
० राजेन्द्र जोशी, बीकानेर
वर्तमान समय के प्रारंभ से ही राजस्थान और संपूर्ण दुनिया में सृजनात्मकता की एक तेज लहर आई और विभिन्न भारतीय भाषाओं के साथ राजस्थानी साहित्य ने धड़ल्ले से अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी प्रारंभ कर दी। राजस्थानी साहित्यकारों द्वारा यूंतो यह सिलसिला बहुत पहले शुरु हो गया था परंतु हमारे समय में अपनी विशिष्ट भाषा-शैली और नवीन प्रस्तुतिकरण के कारण एक महत्त्वपूर्ण साहित्य में उल्लेखनीय और रेखांकित किया जाने लगा है। इस दौर में पेशे से पत्रकार साथी मधु आचार्य ‘आशावादी’ जो रंगकर्मी के रूप में भी पर्याप्त पहचान रखते हैं का राजस्थानी कहानी को अवदान उल्लेखनीय है। उनके कथा-संसार में राजस्थानी संस्कृति का गहरा सरोकार देखा जा सकता है। वे हिंदी और राजस्थानी में समानांतर विविध विधाओं में लिखते हुए इतने सक्रिय हैं कि उन्हें एक उदाहरण के रूप में प्रेरणा स्वरूप भी रखा जा सकता है।
‘आंख्यां मांय सुपनों’ की कहानियां संख्यात्मक रूप से ही नहीं अपनी भाषा-शैली और प्रस्तुति में भी नव है। सभी कहानियों में जैसे लेखक ने अपने भीतर की प्रगाढ़ संवेदनाएं शब्दों में चरित्रों और विषय वस्तु के माध्यम से सकार करते हुए वर्तमान समय और समाज का कोलाज प्रस्तुत किया है। इस कोलाज में अनेक अविस्मरणीय संवाद, घटनाएं और चरित्र है। इन कहानियों की पृष्ठभूमि में राजस्थान बोलता है। जीवनानुभवों और समय के सत्यों से उपजी ये कहानियां नए सोच और विचार की कहानियां हैं जो सामाजिक सरोकारों की नवीनता के कारण राजस्थानी कहानी की विकास यात्रा में पृथक देखी जा सकती है। अलग अलग अनुभवों से सज्जित ‘आंख्यां मांय सुपनो’ संग्रह की कहानियां आधुनिक यथार्थ को समेटती हुई किस्सागोई से परिपूर्ण कहानियां है। कहानियों में उनके अनुभवों के शहर बीकानेर की स्थानीयता परिवेश चित्रण से पाठक जैसे जुड़ते चले जाते हैं।
मधु आचार्य ‘आशावादी’ एक संवेदनशील कहानीकार के रूप में सामाजिक चुनौतियों का भी चतुराई से सामना करते हैं। ‘सीर री जूण’, ‘लाल गोटी’, ‘गोमती री गंगा’ आदि कहानियां यादगार पात्रों का संसार है। इस संग्रह की कहानियों में ऐसे पात्र हैं जो हमारे समाज में हमारे आस-पास है तो सही पर वे हमारे आंखों से ओझल रहे हैं। उनकी सच्चाई, ईमानदारी और भाईचार प्रेरक है। उनकी मानवता और मानवीय संबंध न केवल प्रभावित करने वाले हैं वरन हमारे भीतर वे एक बदलाव को भी जन्म देने वाले हैं। प्रेमचंद ने साहित्य के जिस उद्देश्य को रेखांकित किया था वह उद्देश्य वर्तमान समय और संदर्भों में कैसे निभाया जा सकता है यह रचनाकार हमें इन कहानियों द्वारा जैसे प्रस्तुत करते हुए प्रेरित करता है।
मधु आचार्य ‘आशावादी’ रंगमंच से गहरा जुड़ाव रखते हैं इसलिए इन कहानियों में संवादों का चुटिलापन सर्वत्र विद्यमान है। वे नाटक के अनुभव से पोषित है इसलिए कहानियों में नाट्य तत्वों के निर्वाहन में भी अन्य कहानीकारों से बेहतर नजर आते हैं। इन सब के बीच उन्हें कहानी के मर्म की पकड़ और पहचान है जिसके द्वारा उनकी कहानियां अपने एक पाठ से हमारे भीतर दृश्यों को साकार करती हुई जैसे रच-बस जाती है। यही इन कहानियों और कहानीकार का सर्वाधिक सबल पक्ष है। कहना न होगा कि भारतीय कहानी विकास यात्रा में मधु आचार्य ‘आशावादी’ की कहानियां अपने सांस्कृतिक परिवेश के कारण राजस्थानी संस्कृति का गहरा सरोकार लिए हुए रेखांकित की जाने वाली कहानियां है।
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कहानी विकास-यात्रा में उल्लेखनीय उपलब्धि
० बुलाकी शर्मा, बीकानेर
अपनी सृजनात्मक सामर्थ्य से दूसरों को विस्मित-चमत्कृत करने वाले मधु आचार्य ‘आशावादी’ की विगत पांच वर्षों में राजस्थानी और हिंदी की लगभग पचास पुस्तकें आ चुकी है। साहित्य की विविध विधाओं में साधिकार सृजन करने वाले आशावादी का प्रथम उत्तर आधुनिक राजस्थानी उपन्यास ‘गवाड़’ साहित्य अकादेमी द्वारा सम्मानित हो चुका है। उनका नाटककार और पत्रकार होना उनकी रचनात्मकता को सबल करता है। उनकी कहानियों में नाटकीयता और एक संवेदनशील पत्रकार की खोज-परक के अनेक प्रमाण हम देख सकते हैं।
मधु आचार्य का कथा-संसार हमारे आस-पास का जाना-पहचाना है। उनके कथा चरित्र गहरी मानवीय संवेदनाओं से भरे मध्यम और निम्न मध्यवर्गीय है। ‘आंख्यां मांय सुपनो’ कहानी संग्रह पढ़ते हुए हमें लगता है जैसे हम अपनी परिचित दुनिया से रू-ब-रू हो रहे हैं। कहानीकार की किस्सागोई शैली ऐसी है कि हम उस दुनिया में विचरण करते हुए संवेदनाओं से भीगने लगते हैं। यह इसलिए होता है कि कहानीकार पात्रों के भीतर झांक कर उनके सुख-दुख हमसे साझा कराता है। ‘लाल गोटी’ के नायक गफूर चाचा के ये बोल जैसे कहानीकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने स्वयं के लिए कहे हैं- ‘आदमी नै देखण खातर उण रै मांय झांकणो पड़ै। बारै सूं तो डूंगर चोखा लागै पण हवेली किण तरै री है, आ तो उणरै मांय जायां ही ठाह पड़ै।’
कहानीकार मधु आचार्य समाज रूपी हवेली को न केवल देखते भर हैं वरन उसके भीतर प्रवेश करते हैं। प्रवेश करने पर उन्हें गफूर चाचा और शब्बीर जैसे हिंदू-मुस्लिम पात्र नहीं अपितु मानव धर्म को पूरी शिद्दत के साथ आत्मसात किए शख्स मिलते हैं। साम्प्रदायिक दंगों में इकलौते बेटे को खोकर गफूर चाचा सभी बच्चों में भगवान का रूप मान उनमें रमे रहते हैं (लाल गोटी) और शब्बीर अपने दोस्त जगदीश की मां चंदा काकी से रामरामी करना नमाज पढ़ने जितना ही जरूरी मानता है (धरम री धजा)। बेटों के बीच हिस्सेदारी की जद्दोजहद के कारण घर में भींत (दीवार) पड़ने की त्रासदी से जूझते परचूनी दुकानदार सेठ मोतीलाल नजर आएंगे (घर री भींत), अंदर से टूटे हुए किंतु लोगों के सामने रईसी और अलमस्ती का स्वांग करने वाले मोहन भा को इस नश्वर संसार का परित्याग करते हुए पाएंगे, जिन्हें इस संसार में अपने होने का ही पछतावा रहा हमेशा (सीर री जूण)। यहीं हमें पार्वती काकी मंदिर की सीढ़ियों पर मूरत बनी बैठी दिखाई देगी, जो आतंकवादियों की मुठभेड़ में शहीद हुए अपने सैनिक बेटे रमेश का पच्चीस वर्षों से इंतजार में है (आंख्यां मांय सुपनो)। पति से प्रताडित पापड़ बेल कर परिवार चलानेवाली गोमती की कथा उसकी गूंगी बेटी सह नहीं पाती और अपने पिता की हत्या करके जैसे अपनी मां को गंगा स्नान कराने का अहसास करती है (गोमती री गंगा)। सेवा के नाम पर अपनी सेवा करने वाले जीवण भाई (सेवा रा मेवा) और सुविधाओं के अतिरेक में इंटरनेट से चिपकी रहने वाली मंजू का मोहभंग होते भी देखेंगे।
कह सकते हैं कि मधु आचार्य की इस संग्रह में शामिल सभी नौ कहानियां आपके-हमारे मन में झांकते हुए पूरी संवेदना से रची गई हैं और वे हमें लंबे समय तक हमारे स्मरण में रहेंगी। राजस्थानी कहानी की विकास यात्रा में ये कहानियां अपनी संवेदनशीलता, अलहदा चरित्रों और भाषा-शिल्प के कारण निश्चय ही उल्लेखनीय उपलब्धि है।
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सम्मोहित करती कहानियां
० रमेश भोजक 'समीर', बीकानेर
प्रख्यात कथाकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ द्वारा रचित राजस्थानी कहानी संग्रह ‘आंख्यां मांय सुपनो’ में समाज एवं समय की चेतना का मूल स्वर मिलता है। सच यही है कि साहित्य ही समाज और समय की चेतना का मूल स्वर है। हजारों सालों से मनुष्य ही शब्द की दशा-दिशा और संभावना तय करता रहा है। आज भी लेखक और पाठक के बीच 'शब्द' ही विचार और व्यवहार को तय करता है।
संत तुकाराम ने शब्दों की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा था- ‘शब्द ही एकमात्र रत्न है जो मेरे पास है / शब्द ही एकमात्र वस्त्र है जिन्हें मैं पहनता हूं / शब्द ही एकमात्र आहार है जो मुझे जीवित रखता है / शब्द ही एकमात्र धन है जिसे मैं बांटता हूं।’ शब्द और समय की यह अंतर्यात्रा हमें बताती है कि संसार के सभी मनुष्य चाहे वे किसी भी जाति, धर्म, राष्ट्र अथवा भाषा के हो उनके अधिकार समान है। ‘सीर री जूण’ कहानी में दुनियादारी और किताबी पढ़ाई के संदर्भ में मीडिया की खबरों को कथा में गूंथा गया है। मोहन भा का काम असफल होने का पर उनका आत्महत्या का प्रयास और पत्नी का व्यवहार उन्हें जीवन से जोड़ देता है। राजस्थानी जनजीवन और सांस्कृतिक पक्ष को समेटती यह कहानी मूल्यों की स्थापना करती है। रचनाकार का पावन उद्देश्य है- लोक का मंगल। सरलता, सहजता के साथ संग्रह की अन्य कहानियों के चरित्रों में भी जीवन की जूझ ही उनकी प्रेरक शक्ति बनी है। कहानियों में निहित विभिन्न घटना-प्रसंगों में जीवन के छोटे-छोटे सुख-दुख मिलते हैं, जो अपनी संपूर्णता में व्यापक संकेत देते हैं।
साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ के इस संग्रह को पढ़ते हुए सभी नौ कहानियां मुझे अपने आस पास की लगी। हमारे जीवन और घटनाक्रम से जुड़ी ये अपनी सी लगने वाली कहानियां हैं। इनसे हमारा जुड़ाव इसलिए भी संभव होता है कि आशावादी की यह खूबी रही है कि वे अपनी हर रचना में अपने परिवेश को शिद्दत के साथ सहेजते हैं। इन कहानियों की सरलता-सहजता प्रवाहमयी भाषा कहीं भी हमें बोझिल नहीं करती और ना ही ऊब पैदा करती है।
‘लाल गोटी’ का गफूर चाचा का चरित्र स्थानीय परिवेश के स्नेह और संतर्धाराओं की बानगी प्रस्तुत करता है। शीर्षक कहानी में पार्वती काकी घर के बाहर बैठकर खाली सड़क को देखती रहती है और उसके सपनों का संसार पाठक को बांध लेता है। यहां कहानी में दुख को कहानीकार ने शब्दबद्ध किया है। ‘धरम री धजा’ कहानी सांप्रदायिक सद्भाव का पोषण करती है। ‘गोमती री गंगा’ और ‘हेत री सूळ’ कहानियां राजस्थानी में नई भावभूमि की कहानियां है। पाठक जब इस कृति की पहली कहानी पढ़ना शुरू करता है तो आगे और आगे पढ़ने की लालसा बनी रहती है। जीवन और जीवन के तमाम सरोकारों को सामान्य से प्रतीत होने वाले पात्रों के जरिए बेहतरीन और अनेक भावों को प्रस्तुत करती ये कहानियां सम्मोहित करती है। ‘आंख्यां मांय सुपनो’ की काहानियां भावपूर्ण भाषा और संवेदना के प्रवाह के साथ लिखी गयी हैं, जो जीवन व उसके मूल मर्म को आत्मसात करने में सफल हुई है।
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परिचय
  1. कुंजन आचार्य 
  2. नीरज दइया 
  3. बुलाकी शर्मा 
  4. मनोज पुरोहित ‘अनंत’ 
  5. रमेश भोजक 'समीर' 
  6. राजेन्द्र जोशी 
  7. राजेन्द्र शर्मा ‘मुसाफ़िर’ 
  8. रेणुका व्यास ‘नीलम’ 
  9. संजू श्रीमाली 
  10. हरीश बी. शर्मा 
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राजस्थानी कहानी का वर्तमान ० डॉ. नीरज दइया
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